आयुर्वेद के नाम पर फूड प्रोडक्ट का धंधा करने वाले सावधान हो जाएं. अब सरकार इसके लिए नए नियम बनाने जा रही है. ये नियम उन दावों को लेकर हैं जो फूड प्रोडक्ट की कंपनियां अपने ब्रांड को आयुर्वेदिक बता कर बेचती हैं. ये दावे कितने सही होते हैं, कंपननियां जो दावे करती हैं, उनकी जांच होगी. खाद्य सुरक्षा रेगुलेटर एफएसएसएआई (FSSAI) और आयुष मंत्रालय नए नियमों को लेकर काम कर रहे हैं.कोरोना जैसी महामारी में इम्युनिटी बढ़ाने के नाम पर कई तरह के प्रोडक्ट बेचे जा रहे हैं. हर प्रोडक्ट को आयुर्वेदिक बता कर बेचा जा रहा है. इसमें हर्बल चाय, तुलसी, काढ़ा और यहां तक कि हैंड सैनिटाइजर तक. अब ऐसे प्रोडक्ट एफएसएसएआई और आयुष मंत्रालय के जांच के घेरे में आएंगे. फूड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया FSSAI ऐसे प्रोडक्ट के लिए नए मानदंड बनाने जा रहा है जिसे आयुर्वेद के नाम पर फूड प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों को लागू करना होगा. आयुर्वेद आहार या आयुर्वेद का मार्का लगाकर फूड प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियों को नए नियम का पालन करना होगा.प्रस्तावित ड्राफ्ट के मुताबिक, आयुर्वेदिक आहार प्रोडक्ट की लेबलिंग, प्रेजेंटेशन और विज्ञापन में कंपनियां इस बात का दावा नहीं कर सकेंगी कि उनका उत्पाद बीमारी का इलाज या उसे रोकने में कारगर में है. ‘बिजनेस लाइन’ की एक रिपोर्ट बताती है कि एफएसएसएआई पिछले तीन साल से नए रेगुलेशन को लेकर आयुष मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श कर रहा है. इसी बाबत FSSAI ने पैकेटबंद खाद्य उत्पादों को लेकर ड्राफ्ट रेगुलेशन जारी किया है. ऐसे कई खाद्य उत्पाद हैं जो आयुर्वेदिक पद्धति से प्रेरित होकर बेचे जाने का दावा कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक एफएसएसएआई के जांच के घेरे में खास तौर पर हर्बल चाय, हर्ब और बादाम पाक आ सकते हैं. इस ड्राफ्ट का नाम ड्राफ्ट फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (आयुर्वेद आहार) रेगुलेशन, 2021 दिया गया है.आयुर्वेदिक दवाएं, आयुर्वेदिक पद्धति पर बनी अन्य दवाएं, मेडिसिनल प्रोडक्ट, हर्ब और ऐसी खाद्य सामग्री जिसमें आयुर्वेदिक तत्वों का इस्तेमाल न हुआ हो, FSSAI के नए नियम के दायरे में नहीं आएंगे. नए नियम के मुताबिक, आयुर्वेदिक प्रोडक्ट में सिर्फ नेचुरल फूड एडिटिव ही मिलाए जाएंगे. आयुर्वेदिक आहार में विटामिन, मिनरल और एमिनो एसिड मिलाने की कोई इजाजत नहीं होगी. अगर उत्पादों में नेचुरल एडिटिव मिलाते हैं तो उसकी भी लिमिट तय की जाएगी. नेचुरल एडिटिव जैसे कि बबूल का गोंद (एकेसिया गम), शहद गुड़ या हनी जैगरी, गुलाब तैल, केवड़ा तैल, गुलमेंहदी तैल, खजूर का रस और खांड़ मिलाने की मात्रा तय की जाएगी. आयुर्वेदिक आहार बनाने वाली कंपनियां फूड प्रोडक्ट के पैकेट पर ऐसा कोई दावा नहीं करेंगी जिससे ग्राहक भ्रमित होते हों. अब वैसे ही दावे किए जाएंगे जो फूड प्रोडक्ट में शामिल होंगे. जांच होने पर कोई कमी निकलती है तो कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. कोई आहार या आयुर्वेद दवा बीमारी को रोकने का दावा करती है, तो इसके लिए एफएसएसएआई से पहले प्रोडक्ट की जांच कराकर लेबलिंग की अनुमति लेनी होगी. कंपनियां किस तरह के दावे कर सकती हैं, इसकी जांच के लिए आयुष मंत्रालय एक कमेटी बनाएगा. FSSAI ने आयुर्वेदिक आहार प्रोडक्ट के लिए एक लोगो भी प्रस्तावित किया है जो पैकेट पर एडवाइजरी के साथ लगाए जाएंगे.
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