हमारे आसपास का मौसम बदलते ही बच्चों को सर्दी-खांसी होना आम बात है, इसीलिए अकसर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है और इसे साधारण समझते हुए बच्चों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है, लेकिन लापरवाही के चलते यही सामान्य सर्दी-खांसी बढक़र निमोनिया और साइनोसाइटिस में बदल जाती है। अनेक बार बच्चे का कान भी बहने लगता है। इसी कारण सर्दी खांसी होने पर इसमें लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, खासकर बच्चे के विषय में तो कदापि नहीं।जब कोई छींकता है या रोगी व्यक्ति के सम्पर्क में आता है, तब वह स्वस्थ बच्चे को आक्रान्त कर लेता है। बहुत ज्यादा छींके आना, गले मेंं खराश, बुखार, शरीर में दर्द, खांसी आदि लक्षण इसमें मिलते हैं। सामान्यतया 5-6 दिन में बुखार उतर जाता है।आयुर्वेद में सर्दी-खांसी संबंधी लक्षण प्रतिश्याय में मिलते हैं। एलर्जी, बदलता मौसम, ठंडे से गरम या गरम से एकाएक ठंडे में जाना, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना, उचित पोषक सन्तुलित आहार का सेवन न करना आदि कारण से बच्चों में यह रोग हो सकता है। कई बार कुछ बच्चों में रोगों से लडऩे की क्षमता का कम होना भी प्रमुख करण होता है साथ ही एलर्जन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना भी इसका प्रमुख कारण है। जिस कारण सर्दी खांसी बार-बार एवं निरंतर होती रहती है।जब कोई छींकता है, तब क$फ की छोटी-छोटी बूंदों में पाये जाने वाले वायरस स्वस्थ बच्चे में सांस या मुंह द्वारा भीतर लेने से तथा नासास्राव के सम्पर्क में आने पर फैलता है।
आयुर्वेद में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी रोग की चिकित्सा करने के बजाय उससे बचाव करना श्रेयस्कर है, इसलिए बच्चों को सर्दी-खांसी न हो इस बात का हमें पूरा ध्यान रखना चाहिए। वातावरण बदलने पर हमारे शरीर के दोषों की स्थिति बदलती है जोकि किसी भी रोग की उत्पत्ति का प्रमुख कारण होता है। इस हेतु हमें बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करना चाहिए। ताकि उन्हें बार-बार होने वाली सर्दी खांसी से बचाया जा सके। आयुर्वेद में व्याधिक्षमत्व हेतु रसायन द्रव्यों का प्रयोग बताया गया है साथ ही चित्रक हरीतकी, तुलसी आदि का प्रयोग करने को कहा गया है। दिनचर्या के अंतर्गत प्रतिमर्श नस्य का भी प्रयोग बतलाया गया है। प्रतिमर्श नस्य से किसी भी प्रक ार की हानि नहीं होती। यह स्वस्थ स्नेह के लिए किया जाता है इसमेें दो बूंद तेल मात्रा का प्रयोग विभिन्न फलों में करने को कहा गया है।बचावजहां तक हो सके, भीड़भाड वाले स्थानों में बच्चो को ले जाने से बचना चाहिए। साथ ही जिन्हें सर्दी-खांसी की तकलीफ हो, उनके पास बच्चों को नहीं ले जाना चाहिए। खांसते तथा छींकते समय रूमाल का प्रयोग करना चाहिए ताकि संक्रमण न फैले। नाक एवं मुंह ढंककर या मास्क का प्रयोग कर बाहर निकलना चाहिए। प्राय: देखा जाता है कि बच्चे सुबह-सुबह पलंग से उठकर नंगे पैर ही चलने लगते हैं, जिस कारण ठंड लगने की आशंका बढ़ जाती है। इसीलिए वातावरण बदलने की स्थिति में मोजे का प्रयोग करना चाहिए। हाथों कों समय-समय पर स्वच्छ पानी से साफ करते रहना चाहिए।बच्चों को बाहर के खाने के बजाय घर का ही पौष्टिक आहार खिलाने पर जोर देना चाहिए। नहाने के लिए ज्यादा ठंडे पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ज्यादा तेज मिर्च मसाले युक्त भोजन का सेवन नहीं कराना चाहिए। सर्दी खांसी होने पर ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए। सर्दी खांसी में निकटु अर्थात सौंठ, पिप्पली, कालीमिर्च का प्रयोग लाभकारी है।गरम पानी की भाप का प्रयोग भी बच्चों में हितकारी है, किन्तु इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिए। भाप से क$फ ढीला हो जाता है तथा बन्द नाक खुल जाती है। सरसों तेल की एक-दो बूंद नाक में डालना भी फायदेमंद है।उपचारसितोपलादि चूर्ण का प्रयोग हितकारी है। इसका प्रयोग शहद के साथ करने से खांसी में बहुत आराम मिलता है। सितोपलादि चूर्ण में एक निश्चित अनुपात में मिश्री, तालीस, पिप्पली, इलायची तथा दालचीनी का मिश्रण होता है। इसी प्रकार गोदन्ती भस्म, नारदीय लक्ष्मी विलास रस का प्रयोग भी लाभकारी है। गले में खराश होने पर लवंगादि वटी, व्योषादि वटी, खदिरादि वटी को चूसना लाभकारी है, अणु तैल, षड्बिन्दु तेल आदि का नासा द्वारा प्रयोग श्रेयस्कर है। किन्तु औषध लेने से पूर्व चिकित्सकीय परामर्श अत्यंत आवश्यक है क्योंकि प्रत्येक बच्चे की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है साथ ही आयु तथा बल के आधार पर औषधि मात्रा में भिन्नता हो सकती है।
Copyright © 2024 Ayushman. All rights reserved. Design & Developed by