बुरहानपुर, मप्र। शरीर में दूषित, विषाक्त और विजातीय पदार्थों के एकत्र होने से रोग उत्पन्न होते हैं। इन पदार्थों के एकत्र होने का मुख्य स्थान पेट है। इसलिए पेट स्वस्थ है, तो हम भी स्वस्थ हैं और पेट बीमार है, तो हम भी बीमार हैं। जो भोजन हम लेते हैं, उसमें 75 प्रतिशत क्षार तत्व और 25 प्रतिशत अम्ल तत्व होना चाहिए। भोजन में 25 प्रतिशत से अधिक अम्लीय आहार लिया तो रक्त में अधिक खटाई हो जाती है। इस कारण वह दूषित हो जाता है। यह जानकारी प्राकृतिक चिकित्सा शिविर में दी गई। अखिल भारतीय गायत्री परिवार द्वारा आयोजित प्राकृतिक चिकित्सा शिविर में प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. विकास पाटील ने कहा कोरोना वायरस से बचने के लिए भी यज्ञ चिकित्सा एक समग्र उपचार है। शरीर दूषित पदार्थ को पसीने और मूत्र द्वारा बाहर निकालने की चेष्टा करता है। यह बाहर नहीं निकलता तो शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है। इस प्रकार जो आहार पच नहीं पाता अर्थात रस-रक्त में परिवर्तित नहीं हो पाता, वह शरीर के लिए विजातीय पदार्थ है। उसे बाहर निकाल देना चाहिए। उसका कुछ अंश भी शरीर में रह जाए तो वह रक्त संचरण द्वारा समस्त शरीर में फैलकर दूषित विकार और रोग उत्पन्न करता है। प्राकृतिक चिकित्सा में इन्हीं विजातीय पदार्थों को हटाकर शरीर को स्वस्थ किया जाता है। डॉ. पाटील ने कहा नियमित अग्निहोत्र करने से शरीर में प्राण तत्व की वृद्धि होती है। यज्ञ का धुआं आसपास के क्षेत्र को शुद्ध करता है। शोध में पाया गया है कि जहां नियमित अग्निहोत्र होता है, वहां घातक बैक्टीरिया और वायरस भी समाप्त हो जाते हैं। दुनिया में पैर पसार रहे कोरोना वायरस से बचने के लिए भी यज्ञ चिकित्सा समग्र उपचार पद्धति है।
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