रजोनिवृत्ति से तात्पर्य स्त्री के जीवन काल की उस अवस्था से है, जब उसमें रज अर्थात मासिक चक्र का आना पूर्णत: बन्द हो जाता है, तत्पश्चात गर्भ धारण की संभावना भी नहीं रहती। जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक स्त्री के शरीर में बहुत सारे परिवर्तन होते हैं, जिनमें से एक रजोनिवृत्ति है। रजोनिवृत्ति की सम्पूर्ण प्रक्रिया एक या दो दिन में न होकर लगभग एक से पांच वर्ष में पूर्ण होती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, जो कुछ महिलाओं में संकटकालीन होते हुए प्रजनन क्षमता में क्षीणता लाती है।
आयु - रजोनिवृत्ति की औसत आयु 40 से 50 वर्ष है परंतु यह देखने में आता है कि शीत कटिबंधीय देशों में यह देर से व ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में शीघ्र होती है।कारण - यह सम्पूर्ण प्रक्रिया शरीर में डिम्ब ग्रन्थि (ovary) की निष्फलता एवं उसके पश्चात स्त्रीत्व हार्मोन इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरॉन के अभाव के कारण तन्त्रिका तन्त्र में उत्पन्न विक्षोभ के कारण घटित होती है। कुछ महिलाओं में समय पूर्व रजोनिवृत्ति होती है जिसका कारण डिम्बग्रन्थि का अभाव, निष्फलता, उच्छेदन एवं विकिरण आदि हो सकते हैं।लक्षण- कुछ स्त्रियों में रजोनिवृत्ति सामान्य रूप में परन्तु कुछ में अत्यंत कष्ट के साथ होती है। जो स्त्रियां पहले से बीमार हैं, मानसिक तनाव में हैं उनमें लक्षण उग्र रूप में सामने आते हैं। चूंकि रजोनिवृत्ति के समय तीनों दोष वात, पित्त व क$फ के मिले-जुले लक्षण प्रकट होते हंै जैसे-1 शरीर में अत्यधिक गर्मी महसूस होना। 2 नींद न आना। 3 सेक्स की इच्छा में कमी आना। 4 चिड़चिड़ापन होना।5 स्मृति का हृास (memory loss) होना।6 योनि में सूखापन होना (vaginal dryneo) 7 योनि में खुजली होना।8 प्रजनन अंगों में धीरे-2 शोष होना। 9 गर्भाशय की पेशियों में शोष के कारण गर्भाशय का सिकुड़ कर छोटा एवं तन्तुयुक्त हो जाना।10 मासिक धर्म का आना धीरे-धीरे कम होना। 11 दो ऋतु चक्र के बीच का अन्तराल बढ़ते जाना।12 शरीर का वजन बढऩा, विशेषरूप से उदर में वसा (द्घड्डह्ल) का संचय होना। 13 सन्धियों में पीड़ा होना।14 अस्थियों में सुषिरता (osteoporosis) होना। 15 प्रारम्भ में काम शक्ति का बढऩा एवं उसके पश्चात धीरे-धीरे कम होना।16 शारीरिक दुर्बलता महसूस होना। 17 त्वचा का लचीलापन कम होना व उसमें झुर्रियां पडऩा।18 मलावरोध (constipation) होना। 19 पेट फूलना। 20 पेशाब बार-बार आना। 21 रात में पसीना आना।चिकित्सारजोनिवृत्ति कोई बीमारी नहीं, बल्कि शारीर क्रिया में होने वाला सामान्य परिवर्तन है। यदि स्त्री ज्ञानवान, शिक्षित व सुसमायोजित होगी तो वह स्वस्थ्य संतुलित जीवनशैली अपनाकर बहुत हद तक इन लक्षणों से निजात पा सकती है परन्तु यदि वह मनोविकारी प्रवृत्ति (Neuronic)होगी, तो उसे चिकित्सा की आवश्यकता होगी। अत: प्रत्येक स्त्री को मेनोपॉज़ को समझना होगा कि कि यह एक स्वाभाविक अवस्था है। इससे संबंधित सभी भ्रम व आशंकाओं जैसे- रजोनिवृत्ति पश्चात उसमें पहले जैसा आकर्षण नहीं रहेगा, उसका स्त्रीत्व कम हो जाएगा, कामोत्तेजना में उसे परम सुख का अनुभव नहीं होगा, को पूर्णत: त्यागना होगा।चूंकि रजोनिवृत्ति के समय शरीर में स्त्रीपोषक हार्मोन इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरॉन का बनना कम होने लगता है, इस कारण शरीर में ऊर्जा का स्तर गिरने लगता है। उसका पाचन व चयापचय तंत्र के भी ठीक से काम न करने के कारण व ऊर्जा स्तर को नियमित करने हेतु भूख अधिक लगती है। अधिक भूख होने पर वह बार-2 भोजन करती है, परंतु उस भोजन का पाचन व चयापचय ठीक न होने से वसा (Fat) का अनियमित वितरण होता है, जिससे उसका वजन बढ़ता जाता है व पेट पर भी चर्बी बढ़ती है। अत: इस समय स्त्री को अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना होता है जिससे उसकी आकर्षण शक्ति में कोई कमी न आवे जैसे-1 भोजन सादा, ताजा व सुपाच्य ले।2 हरी सब्जियां फल व सूखे मेवे का सेवन।3 पानी खूब पिये।4 पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के लिये पैकेड प्रोसेस्ड् व जंक फूड से परहेज करें।5 खट्टे फ ल व मिर्च मसाले से परहेज ।6 अल्कोहल व कैफीन युक्त पदार्थ जैसे चाय व कॉफी से दूर रहे।7 पर्याप्त मात्रा में विश्राम करें। 8 सुबह की खुली हवा में घूमें।9 व्यायाम व योगासन करें। 10 नींद पर्याप्त लें।औषधियों में अश्वगंधा, अर्जुन, शतावरी, धनिया, जीरा, त्रिफला का सेवन अभ्यंग व शिरोधारा करवाएं। नाड़ी शोधन, प्राणायाम (Alternate nostrils Breathing)करें।
Copyright © 2024 Ayushman. All rights reserved. Design & Developed by