बच्चो का शारीरिक और मानसिक विकास
किसी भी राष्ट्र के निर्माण में बच्चों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और यदि बच्चे ही विकास के चरण में पीछे रह जाएं, तो एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है। प्रत्येक बच्चे का वंशानुक्रम और उसका परिवेश का वातावरण भिन्न-भिन्न होता है। फलस्वरूप बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में भी विशेषताओं की भिन्नता होती है, जो न केवल उसकी शारीरिक आकृति में, अपितु बौद्धिक क्षमता में भी दिखाई देती है।
समय के साथ जैसे-2 बच्चे का विकास होता है, उसे बीमारियां भी होने लगती हैं। बार-बार बीमार होना बच्चे के विकास में बाधक हो सकता है। आयुर्वेद में बाल्यावस्था में कफ की प्रधानता रहती है, इस कारण उन्हें कफज़ रोग होने की आशंका अधिक रहती है।
यदि बच्चों का पालन-पोषण तथा देखरेख में लापरवाही बरती जाए, तो उसका असर उसके विकास पर पड़ सकता है, क्योंकि इस अवस्था में यदि उनकी समुचित देखभाल न की जाए, तो वे बड़े होने पर अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त रह सकते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास न होने से अल्पायु भी हो सकते हंै।
चरित्र निर्माण
बचपन में बच्चा जो भी अपने आसपास देखता है, सुनता है, वही उसके चरित्र का निर्माण करता है। जैसी नींव बचपन में रखी जाती है, वह आगे तक बरकरार रहती है। इसी आधार पर बच्चे की वृद्धि तथा विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। यदि बच्चे के आसपास का वातावरण कलुषित, अशांत एवं कोलाहलयुक्त है, तो वह उसके मानसिक विकास में बाधक है। बच्चों का मन अत्यंत भावुक तथा कोमल होता है। यदि बच्चा प्रारंभ से ही झूठ बोलने लगता है तो उसके झूठ बोलने की आदत निरंतर बनी रहती है।
आहार
बच्चों के विकास में आहार का विशेष महत्व होता है। यदि बच्चे को संतुलित आहार (अर्थात् कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, विटामिन आदि पर्याप्त पोषक तत्वयुक्त) नहीं मिलेगा, तो वह कुपोषण का शिकार हो सकता है तथा उसके विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है। कार्बोहाइड्रेट हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं तथा प्रोटीन तो बच्चों की शारीरिक वृद्धि तथा मानसिक क्षमता के लिए अत्यंत आवश्यक है। विटामिन शरीर के रोगों से लडऩे की शक्ति देते हंै, जबकि जल जीवनीय शक्ति है, जो बच्चों के लिए अत्यंत आवश्यक है। दूध बच्चों का प्रमुख आहार माना जाता है, उसमें भी गाय का दूध सर्वोत्तम होता है, क्योंकि यह पचने में लघु होता है।
बच्चे अक्सर सब्जियां खाने से मना करते हैं, किन्तु बच्चों के लिए यह अत्यंत आवश्यक होती हंै, क्योंकि इनमें विटामिन तथा खनिज लवण प्रचुर मात्रा में होने से यह पेट साफ रखती हंै तथा शक्ति प्रदान करती है। सब्जियों में विशेष रूप से गाजर, भिण्डी, परवल, पालक, लौकी, करेला अत्यंत फायदेमंद है। इसी प्रकार दालों में प्रोटीन की अधिकता होती है। बच्चे को प्रारंभ से ही सभी कुछ खाने की आदत डालनी चाहिए।
मालिश
बच्चों को नित्य तैल मालिश कर स्नान कराना चाहिए क्योंकि उनकी मांसपेशियां कोमल होती हैं। मालिश से बच्चे का शरीर पुष्ट होता है तथा आघात सहन करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
प्यार की समझाइश
बच्चा यदि हमारा कहना न माने या ऐसे कार्य करने की हठ करे, जो अनुचित है, तब उसे प्यार से समझाना चाहिए। उसे कभी भी डराना नहीं चाहिए, अन्यथा वह डरपोक बन सकता है तथा मानसिक विकारों से ग्रसित हो सकता है।
माता-पिता बने आदर्श
बच्चे के विकास हेतु माता-पिता को भी शान्त, गंभीर, अनातुर, वत्सल तथा शुद्ध आचार-विचार वाला होना चाहिए। सतत् जागरूक और बच्चे के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। माता को वैसे भी बच्चे का प्रथम गुरु कहा गया है, अत: माता को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।
खेल
खेल बच्चे के जीवन का एक अभिन्न अंग है। खेल घर के अंदर तथा बाहर दोनों जगह खेले जाते हैं किन्तु खेल में किसी भी प्रकार की हानि नहीं होनी चाहिए। खेल से शरीर को मजबूती तथा लचीलापन प्राप्त होता है। खेल शारीरिक तथा मानसिक विकास में सहायक होते हैं। खेलने का स्थान समतल तथा साफ-सुथरा होने से बच्चों के ठोकर लगने तथा गिरने की आशंका कम रहती है।
इसी प्रकार खिलौनों का भी एक अपना अलग महत्व है। खिलौने रंग-बिरंगे सुन्दर सुखप्रद हों, लेकिन भारी न हों साथ ही भय उत्पन्न करने वाले खिलौने नहीं होने चाहिए। खिलौने उनकी आयु के अनुसार शारीरिक तथा मानसिक विकास में सहायक होना चाहिए।
पर्याप्त नींद
निद्रा को जीवन का उपस्तंभ बताया गया है। बच्चों के विकास एवं पोषण में नींद का अपना महत्व है। यदि बच्चा पर्याप्त नींद न ले, तो उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसका मानसिक स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है। कुछ बच्चे कम सोते हैं और कुछ ज्यादा। जैसे-2 उम्र बढ़ती जाती है, नींद लेने की क्षमता भी घटती जाती है।
बचाएं रोगों से
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, उनके अच्छे विकास हेतु उन्हें प्रात: काल जल्दी उठने और रात में जल्दी सोने की आदत डालनी चाहिए। प्रात: काल की शुद्ध हवा उन्हें दिनभर तरोताजा रखती है तथा शरीर को निरोगी रखती है साथ ही मन भी प्रसन्न रहता है। व्यायाम, पैदल चलना आदि क्रियाओं से उन्हें वर्तमान जीवनशैली की बीमारियों (मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, हृदय विकार) से काफी हद तक बचाया जा सकता है। जो बालक रात में देर तक जागते हैं, वे दिन भर आलस से भरे रहते हैं। किसी कार्य को पूर्ण तन्मयता से नहीं कर पाते उनकी शारीरिक तथा सोचने समझने की क्षमता भी कम रहती है।
ज्यादातर बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास एक दूसरे पर निर्भर होता है यदि शारीरिक विकास धीमा होता है, तो मानसिक विकास की गति भी मंद पड़ जाती है। जिन बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम रहती है, अक्सर बीमार रहते हंै एवं जिन्हें पर्याप्त पोषक युक्त आहार प्राप्त नहीं हो पाते, उनके विकास में भी बाधा उत्पन्न होती है।