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आयुर्वेद को दुनिया में स्वीकार्य बनाने की तैयारी, कई देशों व विश्वविद्यालयों के साथ हुआ समझौता

आयुर्वेद को दुनिया में स्वीकार्य बनाने की तैयारी, कई देशों व विश्वविद्यालयों के साथ हुआ समझौता

Published on 16 Mar 2020 by Ayushman Magazine News Update

लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में आयुष मंत्री श्रीपद नाइक आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी।
नई दिल्ली। आयुर्वेद समेत भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को दुनिया भर स्वीकार्य बनाने के लिए पहली बार एक साथ कई कदम उठाए गए हैं। इसके लिए आयुर्वेद व भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की पढ़ाई करने वाले विदेशी छात्रों के लिए छात्रवृति की व्यवस्था से लेकर इसमें शोध व अनुसंधान के लिए 23 देशों और 22 विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ समझौते भी किये गए हैं। 13 देशों में स्थित विदेशी शिक्षण संस्थाओं में विशेष आयुर्वेद व भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के लिए चेयर भी स्थापित किये जा रहे हैं। इसके अलावा 31 देशों में 33 आयुष सूचना केंद्र भी बनाए गए हैं, जहां भारतीय चिकित्सा पद्धति के बारे में प्रमाणिक जानकारी कराई जाती उपलब्ध है।
98 देशों के छात्रों के लिए 104 छात्रवृतियों की शुरुआत
लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में आयुष मंत्री श्रीपद नाइक आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी। इसके तहत भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद माध्यम से 98 देशों के छात्रों के लिए 104 छात्रवृतियों की शुरूआत की है। ये छात्रवृति भारत आकर आयुर्वेद में स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने वाले इन देशों के छात्रों को दी जाएगी।
इसके साथ ही भारत ने जापान, जर्मनी, चीन, नेपाल, बांग्लादेश, हंगरी, थाईलैंड, ईरान जैसे 23 देशों के साथ भारतीय चिकित्सा पद्धतियों व होम्योपैथी के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता किया है। साथ ही ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जर्मनी जैसे 11 देशों में स्थिति विश्वविद्यालयों के साथ आयुर्वेद में रिसर्च के लिए भी समझौता किया गया है।
अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान की जरूरत
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेदिक दवाओं को मान्यता दिलाने के लिए अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान की जरूरत है और सरकार इसके लिए भरसक प्रयास कर रही है। इसके लिए सीएसआइआर की विभिन्न प्रयोगशालाओं में अत्याधुनिक आयुर्वेदिक दवाइयों को विकसित किया जा रहा है, जिनमें कई सफल भी रही हैं। इनमें डायबटीज के इलाज में सीएसआइआर द्वारा विकसित दवा बीजीआर-34 अहम साबित हुई है।
डायबटीज को रोकने में सफल होने के कारण यह बाजार में एलोपैथी दवाओं को कड़ी टक्कर दे रही है। डायबटीज, कैंसर, पक्षाघात, हृदय व सांस से संबंधित बीमारियों के इलाज में आयुर्वेद की सफलता के बाद सरकार ने इसके एलोपैथी के साथ मिलाकर समेकित इलाज की योजना शुरु की है, जो काफी सफल साबित हो रही है। सरकार का मानना है कि इस सफलता को विदेशों में भी दोहराया जा सकता है।