ग्वालियर। अंग्रेजी दवाओं के साइडइफेक्ट्स ज्यादा हैं, इसी कारण दुनियाभर के देशों में अब हर्बल औषधियों पर विश्वास बढ़ा है। पेड़-पौधों से प्राप्त औषधीय तत्वों की जानकारी को युवा पीढ़ी को बताने की जरूरत है। इसके लिए प्राचीन लिपिबद्ध ज्ञान का वेलिडेशन करें और उसका प्रचार-प्रसार करें। हमारे वेदों और आयुर्वेद में करीब दो हजार पौधों के बारे में बताया है, जिनका औषधीय के साथ अन्य महत्व भी है। गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज भी हर्बल औषधियों से संभव है। यह बात दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट से आए डॉ. रामलखन सिंह सिकरवार ने कही। वह जीवाजी यूनिवर्सिटी में मॉडर्न ट्रेंड्स इन इथनोबॉटनिकल रिसर्च विषय पर आयोजित नेशनल सेमिनार पर बोल रहे थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में कार्यपरिषद सदस्य डॉ. मुनेंद्र सोलंकी एवं विशिष्ट अतिथि प्रो. अविनाश तिवारी, डॉ. सपन पटेल रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता अध्यक्षता प्रो. डीडी अग्रवाल ने की।सेमिनार में 40 पेपर हुए प्रजेंटएनबीआरआई लखनऊ के डॉ. विजय वाघ ने कहा कि औषधीय पौधों और उनसे संबंधित लिपि को प्रमोट करने की जरूरत है। यह स्टडी करनी होगी कि जो डेटा लिपिबद्ध है, वह कितना सही है। जीवाजी यूनिवर्सिटी की डॉ. सपना पटेल ने कहा कि प्राचीन वनस्पतियों को आधुनिक पद्धतियों से जोडऩा होगा, ताकि शास्त्रों में वर्णित जानकारी का तकनीकी के साथ मिलकर उपयोग हो सके और नई पीढ़ी उससे अपडेट हो सके। सेमिनार में 40 पोस्टर्स प्रजेंट हुए व 12 रिसर्च पेपर्स पढ़े गए।
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