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गर्भावस्था में क्या करें और क्या न करे

गर्भावस्था में क्या करें और क्या न करे

Published on 15 Feb 2020 by Ayushman Magazine Women Corner

गर्भिणी की रक्षा के लिए गर्भावस्था के दौरान जो ख्याल रखा जाता है, उसे आयुर्वेद में गर्भिणीचर्या कहा गया है। गर्भिणीचर्या से तात्पर्य है- गर्भकाल में गर्भवती तथा गर्भ की रक्षा की दृष्टि से कुशल चिकित्सक के निर्देशानुसार आहार-विहार और आचार का व्यवस्थित प्रारूप तैयार करना। इस प्रकार के आचरण से प्रसव के बाधक कारण दूर होकर, स्वस्थ संतान की उत्पत्ति होती है। गर्भावस्था, प्रसूतावस्था तथा सूतिकावस्था में चिकित्सा एक ही चिकित्सक द्वारा होनी चाहिए। यदि एक चिकित्सक गर्भावस्था में परिचर्या करता है और दूसरा प्रसव कराता है, तो ऐसी स्थिति में उत्तम परिणाम की आशा नहीं की जा सकती। दूसरा चिकित्सक उस रोगी के विषय में इतना अनुभव नहीं प्राप्त कर सकता, जितना कि उस चिकित्सक को होगा, जो कि गर्भावस्था से ही लगातार उसकी चिकित्सा कर रहा है।


परिचर्या आवश्यक- इन मामलों में अधिकांश स्त्रियां परिचर्या कराती ही नहीं, जो कराती हैं, वे भी चिकित्सक के निर्देशों का पूरी तरह पालन नहीं करतीं। इसके अलावा कभी-कभी अयोग्यतापूर्ण परिचर्या भी होती है। इस प्रकार की अयोग्यतापूर्ण परिचर्या चिकित्सक, गर्भिणी या दोनों के जरिए हो सकती है। अत: चिकित्सक से परामर्श लेकर उसी के अनुरूप पालन करना चाहिए।

रखें इन बातों का ध्यान


गर्भवती का वजन- गर्भ की प्रारंभिक अवस्था में अधिक भार का होना विकार उत्पन्न कर सकता है। स्वाभाविक रूप से भार की वृद्धि चौथे मास से प्रारंभ होती है तथा लगभग 4 पौण्ड तक प्रतिमाह के हिसाब से 38 सप्ताह तक जारी रहती है। गर्भिणी के भार का माप प्रतिमाह करना चाहिए। आप एक स्वस्थ शिशु को जन्म दें, इसके लिए आवश्यक है कि गर्भधारण और प्रसव के बीच आपके वजन में कम से कम 10 किग्रा की वृद्धि अवश्य हो।

व्यायाम, विश्राम तथा निद्रा:- घर के मामूली कामकाज करना, चलना, फिरना, स्वच्छ हवा में टहलना आदि हल्के व्यायाम गर्भिणी के स्वास्थ्य के लिए हितकर है। परिश्रम के साथ ही विश्राम का भी प्रबंध गर्भवती के लिए होना चाहिए। चौबीस घंटे में आठ घंटे की नींद अवश्य लें।

आहार:- गर्भिणी के आहार का विशेष महत्व है। इस संबंध में यह ध्यान रखना चाहिए कि उसे अपना तथा गर्भ का पोषण करना है। गर्भिणी के पाचक अंगों, वृक्क, त्वचा, फुफ्फुस आदि मलोत्सर्जन के अवयवों को बहुत काम करना पड़ता है, इसलिए आहार सुपाच्य और पौष्टिक होना चाहिए। पोषण ऐसा हो, जिसमें विषैले पदार्थ कम बनें और मलावरोध उत्पन्न न करें।

मलत्याग:- कब्ज कदापि न रहने दें। पर्याप्त मात्रा में जल के सेवन से मूत्रत्याग तथा मलोत्सर्जन सुगमता से होता है। कब्ज उत्पन्न करने वाले आहार का सेवन न करें। कब्ज पैदा न हो, इस प्रकार के साग, सब्जी, फल आदि का सेवन करना चाहिए।

स्नान:- प्रतिदिन कुनकुने जल से स्नान करना चाहिए। गुहांगों को भी स्वच्छ रखना चाहिए।
वस्त्र परिधान:- गर्भावस्था के प्रारंभिक मास में ढीले वस्त्र पहने जाने चाहिए। कसे हुए कपड़ों का पूर्णतया परित्याग करना चाहिए।

वैकारिक स्थिति:-


गर्भावस्था के दौरान उत्पन्न परेशानियों की जानकारी चिकित्सक को देनी चाहिए। उदाहरणार्थ सुबह उठते ही वमन, वैसे तो यह एक स्वाभाविक अवस्था है, परन्तु कभी यह अस्वाभाविक रूप भी धारण कर लेता है। जैसे स्वाभाविक रीति से वमन पित्त मिश्रित रंग का होना चाहिए तथा गर्भिणी कि बिस्तर से उठते ही हो जाना चाहिए एवं वमन के पश्चात गर्भिणी को आराम प्रतीत होना चाहिए। यह वमन कई बार प्रात: न होकर सिर्फ सायंकाल या दिन में किसी भी समय हो जाता है, तो उसकी उपयुक्त चिकित्सा करनी चाहिए। वमन से बचने के लिए आहार की सामान्य मात्रा एक ही बार न लेकर, कई बार में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेना चाहिए। भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा अधिक और मांस, तैल, घृत की कमी कर देनी चाहिए। इससे भी लक्षणों की शांति न हो, तो अतिवमन की चिकित्सा तथा अधिक मात्रा में विटामिन-बी का प्रयोग करना चाहिए (बी 6 विशेषत: लाभप्रद होता है)
गर्भिणी प्रथम दिन से लेकर प्रतिदिन प्रसन्नचित्त, पवित्र अलंकारों से विभूषित, श्वेत वस्त्र धारण करने वाली, शांतिपाठ, मंगलकर्म और पूजा करने वाली हो।
गर्भवती की जो इच्छा उत्पन्न हो उसकी पूर्ति करनी चाहिए, परन्तु गर्भ को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों का त्याग करना चाहिए।
गर्भिणी स्त्री के रोगों में प्राय: मृदु, मधुर, शीतल, सुकुमार औषध प्रयोग करना चाहिए। उसमें वमन, विरेचन और शिरोविरेचन आदि शोधनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान सावधानियां:-

गर्भाधारण होते ही रहन-सहन और खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
किसी भी प्रकार की दवा का सेवन चिकित्सक की अनुमति के बिना नहीं करना चाहिए।
यदि गर्भवती को शुगर या थायराइड हो, तो इसकी चिकित्सा गर्भधारण से पहले ही करनी चाहिए।
मिर्गी, सांस की शिकायत या फिर थायराइड, टीबी हो, तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
गर्भधारण के समय आपके विचार और कार्य भी सकारात्मक होने चाहिए, ताकि होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़े।
प्रसव होने तक योग्य स्त्री रोग विशेषज्ञ की निगरानी में रहें तथा नियमित रूप से अपनी चिकित्सकीय जांच कराती रहें।
गर्भधारण के समय रक्त वर्ग (ब्लड गु्रप) विशेषकर, आर.एच. फैक्टर की जांच के अलावा हीमोग्लोबिन की भी जांच करानी चाहिए।

न बरतें लापरवाही- गर्भावस्था के प्रारंभिक कुछ दिनों तक जी घबराना, उल्टियां होना या थोड़ा रक्तचाप बढ़ जाना स्वभाविक है, लेकिन यह समस्याएं उग्र रूप धारण करें, तो चिकित्सक से सम्पर्ककरें। गर्भावस्था के दौरान पेट में तीव्र दर्द और योनि से रक्त स्त्राव होने पर इसे गंभीरता से लें तथा चिकित्सक को तत्काल बताएं। चकित्सक की सलाह पर गर्भावस्था के आवश्यक टीके लगवाएं व आयरन की गोलियों का सेवन करें। 

गर्भावस्था में मलेरिया को गंभीरता से लें तथा चिकित्सक को तत्काल बताएं। चेहरे या हाथ पैर में असामान्य सूजन, तीव्र सिर दर्द, आंखों में धुंधला दिखना और मूत्र त्याग में कठिनाई की अनदेखी न करें, ये खतरे के लक्षण हो सकते हैं। गर्भ की अवधि के अनुसार गर्भस्थ शिशु की हलचल जारी रहनी चाहिए। यदि बहुत कम हो या नहीं हो, तो सतर्क हो जाएं तथा चिकित्सक से संपर्क करें।

गर्भावस्था के दौरान क्या न करें:-


- भारी श्रम वाला कार्य नहीं करना चाहिए, न ही अधिक वजन उठाना चाहिए।
- बहुत देर तक खड़ी न रहें। यदि किचन में बहुत देर तक खड़ा होना पड़ता है, तो वहां एक कुर्सी रख लें।
- सीढिय़ों का प्रयोग कम से कम करें यदि मजबूरी में नीचे जाना पड़े, तो एक ही बार में अपने सारे काम निपटा लें। सीढिय़ां, रेलिंग पकडक़र ही उतरें।
-हील वाली सैंडल या चप्पल न पहनें।
- तला और मसालेदार भोजन न खाएं, इनसे गैस, एसीडिटी हो सकती है।
- बीमारी कितनी भी साधारण क्यों न हो, चिकित्सक की सलाह के बिना कोई औषधि न लें। यदि किसी नए चिकित्सक के पास जाएं, तो उसे इस बात से अवगत कराएं कि आप गर्भवती हैं।
- प्रेग्नेंसी के दौरान कम से कम यात्रा करें। आठवें और नौवें महीने के दौरान सफर न ही करें, तो अच्छा है।
- ऐसा कोई काम न करें जिससे आपको अत्यधिक तनाव का सामना करना पड़े।
-कुछ मछलियां जैसे ट्यून मछली न खाएं। इनके सेवन से शिशु के मस्तिष्क का विकास प्रभावित हो सकता है।
-बिना डॉक्टरी सलाह के कोई व्यायाम न करें।
-कम न खाएं, आप जितना खाती हैं उससे अधिक खाएं (एक बार में नहीं), आमतौर पर एक शिशु को 300 कैलोरी का आवश्यकता होती है, इसलिए कम से कम इतनी कैलोरीज और लें, ये भी ध्यान रखें कि कहीं आप जरूरत से ज्यादा तो नहीं खा रही हैं।
-प्यासे न रहें। समय समय पर पानी पीते रहें।
-पेट के बल न सोएं।

गर्भावस्था के दौरान सेवन की जाने वाली कुछ आयुर्वेदिक औषधियां:-

-वमन हो तो वोमिनो सीरप 2-2 चम्मच सुबह-शाम लें।
-गर्भपाल रस 2-2 गोली सुबह-शाम दूध से लें।
-आरबीसी प्लस कैप्सूल 1-1 सुबह-शाम दूध से लें।
-जे.पी. जेमफोर्ट सीरप 2-2 चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद लें।