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गर्भावस्था में क्यों जरूरी है अल्ट्रासाउंड

गर्भावस्था में क्यों जरूरी है अल्ट्रासाउंड

Published on 16 Mar 2020 by Ayushman Magazine Women Corner

अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी एक प्रकार की नैदानिक परीक्षण तकनीक है, जिसमें उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल करके शरीर के अंदर की मांसपेशियां, ऊतकों तथा विभिन्न अंगों की जांच की जा सकती है। अल्ट्रासाउंड परीक्षण तकनीक निदान हेतु आवश्यक जानकारी प्रदान करती है। अल्ट्रासाउंड उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों के माध्यम से किया जाता है, जिसे मनुष्य सुन तो नहीं सकता किंतु इन तरंगों को छवि रूप में कम्प्यूटर स्क्रीन के माध्यम से शारीरिक संरचनाओं को देखा जा सकता है।
गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड कराने का मुख्य उद्देश्य यही है कि आपका शिशु सामान्य रूप से विकसित हो रहा है या नहीं। गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी हो जाता है। यह उन महिलाओं के लिये और भी आवश्यक है, जिन्हें गर्भावस्था के दौरान कुछ परेशानी होती है। संपूर्ण गर्भावस्था के दौरान महिला को चार से पांच बार ही अल्ट्रासाउंड कराने की जरूरत होती है, जिसमें पहला अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के शुरूआती चरण में किया जाता है, जिसमें भू्रण को देखकर तथा उसकी हृदय की धडक़न सुनकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि शिशु स्वस्थ है या नहीं। इसके अलावा गर्भावस्था के प्रथम तिमाही में अल्ट्रासाउंड कराने से निम्न जानकारियां प्राप्त होती हैं-
- प्रसव की संभावित तिथि।
- भ्रूण की संख्या तथा भ्रूण हृदय की धडक़न।
- आरोपण का स्थान।
- भू्रण का शारीरिक विकास।
- माता के गर्भाशय, अंडाशय तथा फैलोपियन ट्यूब की स्थिति।
- भू्रण के शिरावाहिनी, हृदय के वॉल्व की स्थिति।
- शिशु के गर्दन के पाश्र्व में त्वचा की मोटाई, नाक की हड्डी का विकास।
गर्भावस्था के द्वितीय तिमाही में अल्ट्रासाउंड कराने से
-भू्रण की संरचनात्मक तथा गुणसूत्र संबंधी विकार की जानकारी प्राप्त होती है, इसे एनॉमली स्केन कहते हैं। इसमें शिशु के मस्तक कपाल व्यास, सिर तथा पेट की परिधि का माप, उसकी लंबाई आदि का ज्ञान कर गर्भस्थ शिशु के विकास का आंकलन किया जाता है। शिशु के चारों ओर स्थित एम्नियोटिक द्रव्य की मात्रा की जानकारी प्राप्त की जाती है।
गर्भावस्था के तृतीय तिमाही में अल्ट्रासाउंड स्कैन से निम्न जानकारी प्राप्त होती है।
- शिशु का विकास, वजन।
- शिशु के चारों ओर एम्नियोटिक द्रव्य की मात्रा।
- ग्रीवामार्ग की लंबाई और आंतरिक छिद्र का व्यास।
- शिशु की प्रस्तुति और स्थिति।
- शिशु के गले में नाल।
कलर डॉप्लर
गर्भावस्था में कलर डॉप्लर की सहायता से गर्भाशयिक धमनियों, शिरावाहिनी आदि में रक्त के प्रवाह की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
गर्भावस्था में उचित अंतराल में अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी होता है। अल्ट्रासाउंड कराने के पूर्व महिला को उसके बारे में कुछ जानकारियां होनी चाहिए ताकि अल्ट्रासाउंड के समय वह असहज महसूस न करे जैसे कि अल्ट्रासाउंड कराने से पहले जांच की मेज पर लेटने के बाद पेट की त्वचा पर चिकना जेल लगाते हैं, जिससे ध्वनि तरंगें आसानी से शरीर में प्रविष्ट हो सकें। कभी-कभी महिलाओं को मूत्राशय भरने के लिए ज्यादा पानी पीने के लिए कहा जाता है, जिससे सोनोग्राफी करने में सहायता मितली है। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में अल्ट्रासाउंड योनि मार्ग से भी किया जाता है, इसमें पतले ट्रांसड्यूसर को योनि मार्ग में प्रविष्ट कर भ्रूण की स्थिति देखी जाती है, हालांकि योनिमार्ग से सोनोग्राफी कराने की जांच के लिए गर्भवती महिला की सहमति आवश्यक रूप से ली जाती है। इस प्रक्रिया में भी किसी प्रकार के दर्द की अनुभूति नहीं होती है तथा योनि स्कैन से शिशु की अधिक साफ तस्वीर मिलती है, गर्भावस्था के शुरूआती चरण में।
अल्ट्रासाउंड कराने जाते समय गर्भावस्था से संबंधित अपनी पिछली रिपोर्ट तथा पहचान पत्र लेकर जाना चाहिए। गर्भावस्था में अपने शिशु के सही विकास की जानकारी प्राप्त करना अल्ट्रासाउंड परीक्षण की महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा सकती है परंतु कुछ लोग लिंग परीक्षण कर इस तकनीक का बेहद गलत इस्तेमाल करते हैं। ज्ञात होवे कि भारत में लिंग परीक्षण करना गैरकानूनी है तथा इसमें पकड़े जाने पर कठोर दंड का प्रावधान है।