बदलती जीवनशैली का एक प्रमुख कारण है आपाधापी और संघर्षपूर्ण दिनचर्या। आज न तो दिन को चैन है न रात को सुकून। कारण क्या हैं और दोष किसका है, इस पर हम आज चर्चा नहीं करेंगे, पर हां एक बात जिससे हमारे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है, उसकी चर्चा जरूर करेंगे। पानी पीने को लेकर के हमारे समाज में पर्याप्त भ्रांतियां विद्यमान हैं। हर किसी का अपना दृष्टिकोण है, आज हम बात कर रहे हैं खड़े होकर पानी पीने की। यह सही है या गलत, हम इसका विश्लेषण करेंगे।आज की पीढ़ी काफी उन्नत है। बच्चे समय से पहले विकसित हो रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच हमें यह बात भी स्वीकार करनी पड़ेगी कि अधिकांश बच्चे हमारी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, यहां तक कि ऐसे अनेक बच्चे हैं, जिन्हें जमीन पर पालथी लगाकर बैठना ही नहीं आता। जमीन पर बैठना उनके लिए सजा हो जाती है। यह बात इसलिए कि आज बच्चे को पानी पीना भी हो, तो फ्रीज के सामने खड़ा होता है और बोतल मुंह में लगा कर पानी पी लेता है जबकि पानी कभी भी खड़े होकर नहीं पीना चाहिए और जल्दबाजी में तो बिल्कुल भी नहीं। आयुर्वेद कहता है कि पानी इत्मीनान से सुखासन में बैठकर घूंट-घूंट कर पीना चाहिए। हमारे शरीर का दो तिहाई भाग पानी से बना होता है। सबसे अधिक यदि आवश्यकता हमारे लिए किसी द्रव्य की होती है, तो वह है पानी और हवा। हमें प्रतिदिन आठ से दस गिलास पानी का सेवन करना चाहिए, इससे स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है। कुछ लोगों की आदत होती है कि वे सादा पानी पीते ही नहीं, कभी ग्लूकोज़ डालकर तो कभी जीरा पानी तो कभी हल्दी पानी। ऐसा पानी हमेशा नहीं पीना चाहिए। सादा पानी पीने की आदत ही हमें स्वस्थ रख सकती है। खड़े होकर पानी पीने से स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव-
जोड़ों के कमजोर होने और सूजने का खतराखड़े होकर पानी पीने से जोड़ कमजोर होने की आशंका बढ़ जाती है। हम जब खड़े होकर पानी पीते हैं, तो शरीर गुरुत्वाकर्षण के अनुरूप नहीं रहता और ऐसे समय में पानी पीने के लिए हम जिस मुद्रा का प्रयोग करते हैं, उससे जोड़ों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इस समय पानी निगलने के लिए जिस तरह की प्रक्रिया अपनानी होती है, उससे मांसपेशियों और संधियों पर अतिरिक्त दबाव आता है। खड़े होकर पानी पीने से कमर दर्द, अंगुलियों और छोटी संधियों में दर्द की आशंका बढ़ती है। यह भी माना जाता है कि इससे इलेक्ट्रोलाइट्स और बॉडी फ्लूइड्स के वितरण में विकार आ जाता है, जो आगे जाकर जोड़ों को खराब करता है। अपचन होने का खतरा खड़े होकर पानी पीने वालों को अक्सर अपचन या अजीर्ण की शिकायत होती है। ऐसे लोग भूख की कमी के साथ-साथ अपचन से ग्रसित होते हैं। इसका कारण यही है कि खड़े होकर पीया गया पानी अन्न को ठीक तरह से मथने में मददगार साबित नहीं हो पाता। वह अवशोषण के लिए अनुकूल माध्यम भी नहीं बना पाता, जिससे अन्न आमाशय में आवश्यक समय तक नहीं रह पाता और समय के पूर्व आंतों में चला जाता है, जिससे सदैव अपचन और आमाजीर्ण जैसे विकार होते हैं।खड़े होकर पानी पीने से प्यास नहीं बुझतीपानी पीने के बाद यदि तृष्णा की संतृप्ति न हो, तो बेकार है। बैठकर पानी पीने से जो संतुष्टि मिलती है, वह खड़े होकर पीने से कदापि नहीं हो पाती है। इसका कारण है कि खड़े होकर पानी पीने से वह आमाशय की सारी दीवारों पर पर्याप्त रूप से अवशोषित न होकर किसी एक स्थल पर यानी नीचे की ओर तुरंत चला जाता है। इससे यह अहसास ही नहीं होता कि प्यास बुझ गई है। इसी कारण पहले कहा जाता था कि भाई आराम से बैठो छोटा सा गुड़ का टुकड़ा खाओ और गिलास भर पानी पी लो। किडनी पर प्रभाव कुछ लोगों का कहना है कि खड़े होकर पानी पीने की कार्यक्षमता कम हो जाती है। हालांकि पानी सीधे आमाशय में जाता है और किडनी का काम बाद में होता है, परंतु आमाशय से जो तंत्रिका नाडियां जाती हैं, वे शरीर के अन्यान्य अवयवों की कार्यविधि पर भी प्रभाव डालती हंै। इसलिए अपरोक्ष तौर पर यह किडनी के काम को प्रभावित करता है। यह पानी अनेक बार मूत्र नलिका की बीमारियों के लिए सहायक कारण बनता है। मूत्र के निर्माण और छानने की प्रक्रिया पर खड़े होकर पीया गया पानी दुष्प्रभाव डालता है। आमाशय और पाचन पर दुष्प्रभाव खड़े होकर पानी पीने से आमाशय के अनेक विकार पैदा होने का खतरा होता है। इस तरह पानी पीने पर वह सीधे सीधे आमाशय के कार्डियक स्फिंक्टर पर दुष्प्रभाव डालता है। यह आमाशय की दीवारों को भी हानि पहुंचाता है। यह आमाशय के वॉल्व खराब करता है, जिससे पानी अनेक बार आमाशय में पर्याप्त समय तक रुक नहीं पाता, इससे पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है। आमाशय का एक निश्चित आकार बेहतर स्वास्थ्य के लिए मदद करता है। बैठकर और खड़े होकर दोनों ही स्थितियों में इसमें परिवर्तन होता है। जब खड़े होकर पानी पीते हैं, तो एकाएक पानी के भार के कारण आमाशय गलत तरीके से फैल जाता है जिससे हवा, पानी और भोजन के तालमेल में अवरोध उत्पन्न होता है। नतीजा, पाचन संबंधी विविध विकार पैदा हो जाते हैं।कोशिकाओं के एसिड लेवल पर प्रभावशरीर की समस्त कोशिकाएं पानी के माध्यम से ही सभी द्रव्यों का आदान-प्रदान करती हैं। अन्तर और बाह्य कोशिका संचरण के लिए पीएच का विशेष महत्व होता है। यदि कोशिकाओं में एसिड की मात्रा में वृद्धि होती है, तो स्वास्थ्य पर पर्याप्त दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं। एसिड बढऩे के कारण कैंसर होने की आशंका बनी रहती है। गैस्ट्रोइसोफेगल गैस्ट्रिक रिफ्लक्स की बढ़ोतरीखड़े होकर पानी पीने से आमाशय में एकाएक गए पानी के कारण एसिड ऊपर की ओर उछलता है और आमाशय ग्रसनी के बीच के वॉल्व पर पर्याप्त दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके चलते इस वॉल्व की कार्यक्षमता कम हो जाती है और वह ठीक तरह से बंद नहीं हो पाता। इस कारण छाती में जलन की शिकायत के साथ-साथ कई बार मुंह से खाना भी आ जाता है। पाचन का यह विकार अनेक प्रकार की अन्य बीमारियों का भी कारण साबित होता है। नसों-नाडिय़ों पर दुष्प्रभाव
खड़े होकर पानी पीने के कारण नसों और नाडिय़ों पर पर्याप्त दुष्परिणाम होते हैं। जब हम खड़े होकर पानी पीते हैं, तब हमारे संवेदनी नाडिय़ों पर दबाव पैदा होता है। थोड़ी सी असावधानी से सभी नाडिय़ां कठिनता के दौर से गुजरती हैं। इसके बाद वे सही तरह से रिलेक्स नहीं हो पातीं, जिससे अनेक प्रकार की तंत्रिकाओं के विकार होने की आशंका बढ़ जाती है। जब हम बैठकर आराम से पानी पीते हैं, तब परासंवेदी तंत्रिका तंत्र कार्य करता है, जिसके कारण नसों पर दबाव न होकर वे विश्राम की स्थिति में होती हैं। इससे बेहतर स्वास्थ्य स्वयमेव ही बना रहता है। इसके चलते पाचन तंत्र अच्छी तरह से काम करता है, फलस्वरूप सभी अवयव अपना काम बख्ूाबी निभा पाते हैं। उदरशूलखड़े होकर पानी पीने से आमाशय में एकाएक तीव्रता के साथ पानी पहुंचता है, जिससे आमाशय की कोशिकाओं में अचानक संकोच या आघात होता है। इससे अनेक बार उदरशूल की उत्पत्ति होती है। यह पानी आमाशय की सामान्य गति को बाधित करता है, जिससे दर्द के अलावा अन्य विकार भी हो सकते हैं। खांसी या सांस की तकलीफ खड़े होकर पानी पीने वालों को सांस/खांसी की तकलीफ होने की आशंका होती है। असावधानी से यदि श्वांस नलिका में पानी जाता है, तो अनेक स्थायी स्वरूप के विकार भी हो सकते हैं। आहार और श्वांस नलिका के बीच तालमेल के अभाव के कारण अनेक विकार हो सकते हैं। हम आपको विस्तार भय से इन सब संभावनाओं की कार्यिकी नहीं बता पा रहे हैं, पर हां एक बात जरूर समझें आयुर्वेद ने जो कुछ भी बताया है, वह कहीं अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं है। इन सबके पीछे वैज्ञानिक कारण और तथ्य हैं।
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