जगदलपुर। बस्तर के जंगल में जड़ी-बूटी और अन्य प्रजातियों के औषधियों की भरमार है, इनमें से अधिकतर विलुप्त होती जा रही हैं। बस्तर से विलुप्त होते ऐसे औषधीय पौधों के संरक्षण और संवर्धन का बीड़ा जगदलपुर के एक परिवार ने उठाया है। यह परिवार तीन पीढिय़ों से वन औषधियों का संरक्षण कर रहा है। काफी मशक्कत और कड़ी मेहनत कर इन्होंने अब तक करीब 135 पौधों का संरक्षण किया है। इन पौधों से मिली औषधि टीबी, सिकलसेल और अस्थमा का उपचार होने की जानकारी संग्राहकों ने दी है।स्वयं के खर्च पर वन औषधियों का संरक्षण कर रही हैंजगदलपुर निवासी प्रभाती भारत ने बताया कि उनके परिवार में महिलाएं तीन पीढ़ी़ से इन पौधों का संरक्षण कर रही है। उन्होंने बताया कि उनकी दादी सास रंभा भारत वैद्य थी। उन्होंने वन औषधि के संरक्षण और संवर्धन करने की शुरुआत की। इसके बाद उनकी सास सुशीला भारत भी इस काम में लग गई। अब प्रभाती भी 10 सालों से यह काम कर रही है। इसके लिए उन्होंने प्लांट मेडिसिन बोर्ड में तीन वर्ष तक ग्रामीण वनस्पति विशेषज्ञ का प्रशिक्षण भी लिया है। वे स्वयं के खर्च पर वन औषधियों का संरक्षण कर रही हैं।पतंजलि योग संगठन की महिलाएं भी जुड़ीप्रभाति भारत के काम को देखते हुए अब उनके साथ महिलाएं भी जुडऩे लगी है। महिला पतंजलि योग संगठन की करीब 8 से 10 महिलाएं भी अब इन औषधीय पौधों के संरक्षण का काम कर रही हैं। योग संगठन की महिलाएं अब ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर ग्रामीणों को वन औषधियों के संरक्षण के लिए जागरूक कर रहे हैं।3 साल में 70 हजार पौधे कर चुके हैं वितरण योग संगठन की महिलाएं पिछले दो-तीन सालों में करीब 70 हजार औषधीय पौधों का वितरण भी कर चुकीं है। समूह की महिलाएं शोभा शर्मा, गीता श्रीवास्तव, सीमा मौर्य, सरस्वती श्रीवास्तव, गोदावरी साहू, सोनाली ठाकुर, मीरा दास, प्रीति पानीग्राही और राधा खत्री ने बताया कि हर साल इन पौधों की मांग बढ़ रही है।विभिन्न बीमारियों का इलाज औषधीय पौधों से ऐसे हो रहा हैपौधे- बीमारियों में उपयोग कटकरीकांटा- सिकलसेलमंजुरगुडी- मलेरियाअडूसा- टीबीगिलोय- डेंगूसहत्रमूल- मिर्गीकुलेंजम - चर्मरोगकालमेघ- मलेरिया बुखारदूधकंद- स्त्रीरोग से संबंधितशतावर- शक्ति वर्धकरक्तविरार- एनीमियाकलिहारी- बीपी रोगसर्पगंधा- रक्तचापदमबेल- अस्थमा
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