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गर्मी में ठंडक पहुंचाने वाले योगासन

गर्मी में ठंडक पहुंचाने वाले योगासन

Published on 09 May 2020 by Ayushman Magazine Yoga

गर्मी में ठंडक पहुंचाने वाले योगासन
मौसम के तापमान का हमारे शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है। गर्मी में तापमान बढऩे से हाई ब्लड प्रेशर, बेचैनी, घबराहट, एन्जाइटी, डिप्रेशन, सिरदर्द, डायरिया, पेट दर्द, मरोड़, लू लगना (सन स्ट्रोक) जैसी समस्याएं सामने आती हैं। भीषण गर्मी के कारण हार्ट अटैक यहां तक कि कार्डियक रेस्ट की नौबत भी आ सकती है। गर्मी की इन समस्याओं से निपटने में नियमित योगाभ्यास और यौगिक आहार अत्यंत लाभदायक सिद्ध होते हैं। श्वास परिभ्रमण का कार्य करती है जिससे शरीर के तापमान में परिवर्तन आता है, इसीलिए ठंडी-ठंडी सांस भरने से शरीर की गर्मी खत्म होती है, तापमान में गिरावट आकर आंतरिक गर्मी से मुक्ति मिलती है। दो मुख्य प्राणायामों (शीतली और शीतकारी प्राणायाम) के अभ्यास से शरीर को तुरंत ठंडक मिलती है। इसके अलावा अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और भस्त्रिका प्राणायाम भी शरीर की आंतरिक उष्मा को कम करते हैं।
लाभकारी यौगिक आसन
मण्डूकासन, योगमुद्रा, भुजंगासन, मार्जारी आसन, पवन मुक्तासन की तीनों सीरीज, पश्चिमोत्तासन, कागासन, हस्त उत्तानासन आदि।
शरीर का तापमान बनाए रखने में गर्मी में ठंडक देने का कार्य हमारा आहार भी करता है। सात्विक यौगिक आहार का पालन करें। दही व दही से बने पदार्थ जैसे- रायता, लस्सी, छाछ इत्यादि। यदि हम दही खा रहे हैं, तो उसमें शक्कर या नमक न डालें बल्कि गुड़ का चूरा कर मिलाएं तब हम दही की पूर्ण गुणवत्ता का लाभ ले पाएंगे। फलों का रस, सब्जियों का रस, नारियल पानी, खीरा, टमाटर, विभिन्न सलाद जैसे- फलों के साथ हरी सलाद या अंकुरित पदार्थ के साथ फल मिक्स किए जाएं।
गर्मी से बचने के लिए विशेषकर क्षारीय खाद्य पदार्थों का सेवन करें। ये पदार्थ शरीर की गर्मी तो खत्म करते ही हैं, साथ ही एसिडिटी, एन्जाइटी, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़, जोड़ों का दर्द, हृदय रोग, ब्रेन स्ट्रोक, हीट स्ट्रोक आदि से बचाने में कवच की तरह काम करते हैं। जिन्हें गर्मी से सिरदर्द, भारीपन, उल्टी, दस्त की शिकायत होती है, वे क्षारीय आहार का पालन करें देखिए समस्याएं कैसे छू मन्तर हो जाएंगी।
क्षारीय यौगिक आहार
सभी हरी सब्जियां, सारे फल, सलाद, अंकुरित अनाज (चना छोड़कर) छाछ, फलों का रस, सब्जियों का रस, नारीयल, नारीयल पानी, पीने के पानी को तांबे के पात्र में रखें।
उज्जायी प्राणायाम
उज्जायी का अर्थ है, ऊंची ध्वनि। इस प्राणायाम को साधते समय गले द्वारा ऊंची ध्वनि निकलती है। इस प्राणायाम में किसी प्रकार का तनाव व दबाव महसूस नहीं होता। पूरक और रेचक के प्रति सजगता बनी रहती है जो स्वर निकलता है, उसकी ध्वनि एक-छोटे से बच्चे के गले से उत्पन्न मीठे खर्राटे की तरह होती है। यह ध्वनि इतनी मंद होना चाहिए कि इसे योगाभ्यासी के अलावा अन्य न सुन सके। हठयोग के अनुसार उज्जायी श्वास सरल और सूक्ष्म होती है, इसलिए इसे उज्जायी प्राणायाम कहते हैं।

  • प्रथम स्थिति

पद्मासन या सुखासन में बैठ जाइए। जिव्हा को मुंह के पीछे की ओर इस प्रकार मोडिय़े कि उसके अग्र प्रदेश का स्पर्श ऊपरी तालू से हो। अब गले में स्वर यंत्र को संकुचित करते हुए श्वसन कीजिये। श्वास अंदर लीजिए क्रिया गहरी धीमी हो। ऐसा अनुभव करना चाहिए कि श्वसन क्रिया नासिका से नहीं वरन् सिर्फ गले से हो रही हो अब दाहिने नासा छिद्र को दाएं अंगूठे से दबाइए पुन: कंठ में संकोचन कीजिए और ध्वनि करते हुए बाएं नासा छिद्र को दाएं अंगूठे से दबाइए पुन: कंठ में संकोचन कीजिए और ध्वनि करते हुए बाएं नासाछिद्र से धीरे-धीरे बाहर निकाल लीजिए।

  • द्वितीय स्थिति

उज्जायी प्राणायाम की द्वितीय स्थिति सरल है जिसे योगाभ्यासी सरलतापूर्वक कर पाएंगे। लाभ दोनों स्थिति के समान है। इसमें नाक के दोनों छिद्रों से धीमी गहरी श्वास लेते हुये श्वास को तालू के ऊपरी भाग पर अनुभव करते हुए ध्वनि उत्पन्न करेंगे इसमें एक या दो सेकण्ड के लिये श्वास रोकेंगे इसे अन्तर्कुम्भक कहते हैं। पुन: श्वास लेने के लिये कुछ सेकण्ड रूकेंगे। रूकने की इस क्रिया को बाह्य कुम्भक कहते हैं।

  • समय

प्रारंभ में इसे पांच बार अभ्यास कीजिए। धीरे-धीरे यथाशक्ति बढ़ाते हुए पांच मिनट तक कर सकते हैं।

  • शारीरिक प्रभाव

इस अभ्यास से तकनीकी रूप से फेफड़ों के कुछ भाग अधिक फैल जाते हैं और रक्त में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में पहुंच पाता है। इस अभ्यास से मस्तिष्क में रक्त की पूर्ति संपूर्ण रूप से होती है इस कारण तनाव कम होता जाता है। उज्जायी ध्यान के अभ्यास में प्रमुख सहायक हैं।

  • लाभ

इससे क$फ दोष तथा कण्ठ, उदररोग, (अजीर्ण, मन्दाग्नि, कब्ज आदि) के विकार दूर होते हैं। यह धातुगत रोगों और जलोदरादि रोगों को भी नष्ट करता है।
अनुलोम विलोम प्राणायाम
अनु का अर्थ है सहित। अनुलोम-विलोम प्राणायाम से दोनों नासिकाओं से श्वसन बारी-बारी से पूरक और रेचक (श्वसन) किया जाता है। स्वाभाविक क्रम में इस प्राणायाम को करने के लिए वज्रासन छोड़कर पद्मासन या सुखासन या अन्य किसी भी ध्यान के आसन में बैठकर करें। इस प्राणायाम के माध्यम से नाडिय़ों की सफाई होती है और व्याधियों पर नियंत्रण प्राप्त होता है।

  • स्थिति

ध्यानासन में बैठकर आंखें बंद रखिए। अब बायां हाथ घुटने पर रखिए और दाएं हाथ का अंगूठा दायीं नासिका पर रखिए। तर्जनी अंगुली टीका पर दोनों भौओं के बीच (जहां टीका लगाते हैं) रखिए। मध्यम अंगुली से बाएंं स्वर को बंद करेंगे।

  • विधि

हमारी इड़ा नाड़ी (बायां स्वर) चन्द्र (दायां स्वर) पिंगला नाड़ी (सूर्य स्वर) रहता है इस कारण अनुलोम-विलोम प्राणायाम को बायीं नासिका से चालू करना चाहिए। बायीं नासिका से श्वास बाहर निकाल देंगे फिर दायीं नासिका से श्वास लेकर बायीं नासिका से श्वास निकाल देंगे यह एक चक्र होगा। ऐसे लगभग 30 चक्र सामान्यत: करना चाहिए, अपनी सामथ्र्य के अनुसार अपनी श्वास- प्रश्वास की गति को घटा और बढ़ा सकते हैं। किसी भी स्थिति में थकान और तनाव महसूस नहीं होना चाहिए। इसका अभ्यास हमेशा स्वस्थ रहने के लिए 5 मिनट तक करना चाहिए। श्वास का अनुपात 1:1 होना चाहिए।
कुछ समय में अभ्यास के बाद पूरक एवं रेचक की अवधि बढ़ाई जा सकती है अर्थात् अनुपात 1:1 रहेगा। 5 गिनती तक आपने पूरक (श्वास ली बायीं नासिका से) किया। फिर इतनी ही गिनती मन में गिन कर रेचक (श्वास निकाली दायीं) जब इसमें अभ्यास हो जाता है। तब इसे 6 गिनती तक पूरक और रेचक कीजिए। श्वास लेने और छोडऩे में ताकत का इस्तेमाल नहीं करना है। श्वास गिनती मन में सामान्य रखना है, पूरक और रेचक की गिनती का ध्यान रखना है। बैलेंस कम ज्यादा नहीं होना चाहिए। कोई भी प्रकार की असुविधा लगने पर पूरक और रेचक की अवधि कम कर देना चाहिए।

पवन गुरु

योगाचार्य, भोपाल